राज्य में बिजली खरीद में कोई भ्रष्टाचार नहीं, ढाई साल में 2 लाख 20 हजार कृषि कनेक्शन दिये - ऊर्जा मंत्री
जयपुर, 14 सितम्बर। ऊर्जा मंत्री डॉ. बी.डी. कल्ला ने मंगलवार को विधानसभा में आश्वस्त किया कि बिजली की खरीद में कोई भी भष्ट्राचार नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार लोगों के हित का कार्य कर रही है तथा जनहित में फैसले लेकर उन्हें समय पर लागू कर रही है।
डॉ. कल्ला सदन में प्रतिपक्ष के नेता श्री गुलाब चन्द कटारिया सहित अन्य सदस्यों द्वारा सोमवार को राज्य में विद्युत क्षेत्र से संबंधित उठाये गये मुद्दों पर अपना जवाब दे रहे थे।
उन्होंने अपने लिखित वक्तव्य में विद्युत विभाग द्वारा इस कोरोना काल में विभाग की पूरी टीम द्वारा दी गई सेवाओं की जानकारी देते हुए बताया कि विद्युत विभाग द्वारा पूरे कोरोना काल में अस्पतालों, ऑक्सीजन प्लान्ट, आइसोलेशन केन्द्रों एवं सभी इमरजेन्सी सेवाओं को दुरुस्त रखा, विभाग ने इस दौरान अपने 120 से अधिक साथियों को खोया लेकिन यह सुनिश्चित किया कि हमारे घरों एवं संस्थानों पर निर्वाध विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित हो सकें।
डॉ. कल्ला ने बताया कि विद्युत क्षेत्र हम सभी के लिए बहुत आवश्यक है एवं हम सबकी जिंदगी के बहुत सारे कार्य बिना विद्युत के संभव होना मुश्किल है। आगे आने वाले दिनों में ई-मोबिलिटी आने के पश्चात हमारी निर्भरता विद्युत क्षेत्र में और अधिक बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि थर्मल संयंत्र कोयला आधारित होते है, कोयले की उपलब्धता राजस्थान में नहीं होने के कारण अन्य राज्यों में स्थित कोयले की खदानों से कोयले की आपूर्ति होती है। इसमें परिवहन में भी अत्यधिक राशि का भुगतान भारतीय रेलवे को करना पड़ता है। अतः थर्मल संयंत्रों से प्राप्त होने वाली बिजली का क्रय मूल्य अपेक्षाकृत अधिक है। राजस्थान में बिजली की क्रय लागत अन्य राज्यों की तुलना में काफी अधिक है। इसलिए राजस्थान में बिजली की दरें अन्य राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत कुछ राज्यों से अधिक है।
इसी तरह बिजली की खरीद लागत राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग द्वारा वितरण निगमों के राजस्व के आंकलन के समय निर्धारित की जाती है। उत्पादन कम्पनियों द्वारा र्इंधन मूल्य में वृद्धि होने पर अतिरिक्त र्इंधन भार का बिल वितरण निगमों से वसूला जाता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2014 से 2021 कोयले की कीमत एवं भारतीय रेल के माल भाडे में 50 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है। विद्युत क्षेत्र में जी.एस.टी. नहीं है लेकिन कोयले पर रूपये 400 प्रति टन की दर से कम्पनसेशन सेस लगया गया है। यह सेस तभी देय होता है जब कोई राज्य अन्य राज्य से कोयला लेकर आता है। केन्द्र सरकार की गलत नीतियों के कारण कोयले के दाम बढ़े है और इसका बोझ उपभोक्ताओं को उठाना पड़ रहा है। वर्ष 2014 में कोयले की कीमत लगभग रु. 2000 प्रति टन थी जो वर्तमान में बढ़कर 2021 में लगभग रु. 3700 प्रति टन हो गई है।
विद्युत विनियामक आयोग द्वारा जारी टेरिफ रेगुलेशन की अनुपालना में विद्युत खरीद की निर्धारित दर एवं वास्तविक खरीद मूल्य में अन्तर की राशि को फ्यूल सरचार्ज के रूप में लिए जाने का प्रावधान है। फ्यूल सरचार्ज का निर्धारण त्रैमासिक आधार पर किया जाता है। उन्होंने प्रतिपक्ष के सदस्यों से कहा कि आपकी सरकार के समय में अक्टूबर, 2018 से दिसम्बर, 2018 की तिमाही में 37 पैसे प्रति यूनिट फ्यूल सरचार्ज वसूला गया था। जबकि वर्तमान में अक्टूबर, 2020 से दिसम्बर, 2020 की तिमाही में 07 पैसे प्रति यूनिट एवं जनवरी से मार्च, 2021 के लिए 16 पैसे फ्यूल सरचार्ज ही लगाया गया है।
उन्होंने कहा कि कई सदस्यों द्वारा सरचार्ज एवं इलेक्टि्रसिटी ड्यूटी का मुद्दा भी उठाया। इस संबंध में उन्होंने बताया कि राजस्थान इलेक्टि्रसिटी डयूटी एक्ट-1962 में संशोधन द्वारा धारा 3 (ग) के अधीन नगरीय उपकर विद्युत उपभोक्ताओं से संग्रहित कर राज्य सरकार को हस्तान्तरित कर दिया जाता है। राज्य सरकार द्वारा इसका उपयोग स्थानीय निकायों द्वारा रोड लाईट के रख-रखाव एवं बिल भुगतान में किया जाता है। नगरीय उपकर की दर 10 पैसे प्रति यूनिट थी। जिसको बाद में बढ़ाकर 15 पैसे प्रति यूनिट कर दी गई जो वर्तमान में प्रभावी है। नगरीय उपकर कृषि श्रेणी, नगरीय क्षेत्र के बाहर सभी श्रेणी के उपभोक्ताओं से एवं नगरीय क्षेत्र में 100 यूनिट / माह उपभोग वाले घरेलू उपभोक्ताओं से नहीं लिया जाता है।
डॉ. कल्ला ने बताया कि राजस्थान इलेक्ट्रसिटी ड्यूटी एक्ट-1962 की धारा 3 (ब) के अधीन जल संरक्षण उपकर 10 पैसे प्रति यूनिट की दर से संग्रहित कर राशि राज्य सरकार को हस्तान्तरित की जाती है। जल संरक्षण उपकर कृषि एवं घरेल श्रेणी के अतिरिक्त अन्य सभी श्रेणी के उपभोक्ताओं से लिए जाने का प्रावधान हैं। बिजली के बिल में लगने वाला विद्युत कर राजस्थान इलेक्टि्रसिटी डयूटी एक्ट 1962 के प्रावधानानुसार उपभोक्ताओं से संग्रहित किया जाता है। वर्तमान में कृषि श्रेणी हेतु विद्युत शुल्क 4 पैसे प्रति यूनिट व अन्य श्रेणियों के लिए 40 पैसे प्रति यूनिट लिया जाता है।
उन्होंने बताया कि विद्युत बिल के साथ-साथ लगने वाले ये सभी सेस एवं ड्यूटी बिजली के बिल के साथ कलैक्ट लिए जाते हैं। लेकिन इसकी आय विद्युत कम्पनियों को नहीं होती है। विद्युत बिलों पर लगने वाले स्थाई शुल्क के संबंध में बताया कि स्थायी शुल्क का निर्धारण राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग द्वारा जारी टैरिफ आदेश के अनुसार किया जाता है। विद्युत बिल में लगने वाला स्थायी शुल्क पिछले वित्तीय वर्ष के औसत मासिक उपयोग के आधार पर लिये जाने का प्रावधान है। घरेलू श्रेणी में लोड के आधार पर स्थाई शुल्क लेने का कोई प्रावधान नहीं है कई सदस्यों ने घरेलू श्रेणी में 800 रूपये का स्थाई शुल्क लेने की बात उठाने पर उन्होंने स्पष्ट किया कि ऎसा कोई स्थायी शुल्क वर्तमान में नहीं लिया जा रहा है।
ऊर्जा मंत्री ने बताया कि विभिन्न श्रेणी के उपभोक्ताओं से वसूल की जाने वाली टैरिफ की दरें विनियामक आयोग द्वारा उसके द्वारा निर्धारित मानकों एवं डिस्कॉम्स् द्वारा प्रस्तुत अंकेक्षित लेखों के आधार पर तय की जाती है। राज्य सरकार का इस प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं है। जहाँ तक ऊर्जा कम्पनियों की ऑडिट का प्रश्न है, यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ये सभी कम्पनियाँ कम्पनीज एक्ट के तहत पंजीकृत हैं एवं उनके वार्षिक लेखों का सर्वप्रथम वैधानिक अंकेक्षण, महालेखाकार कार्यालय द्वारा सूचीबद्ध एवं अधिकृत चार्टर्ड एकाण्टेण्ट फर्मस् द्वारा एवं तत्पश्चात् महालेखाकार द्वारा स्वयं अपने स्तर पर पूरक अंकेक्षण / प्रमाणित कर अंकेक्षण प्रमाण पत्र जारी किया जाता है एवं इसके बाद ही वार्षिक अंकेक्षित लेखे पब्लिक डोमेन में प्रकाशित किये जाते है।
उन्होंने कहा कि किसानों को 833 रूपये प्रतिमाह देने की बात भी प्रतिपक्ष के कई सदस्यों ने उठाई लेकिन मैं यह पूछना चाहता हूं कि 5 साल सरकार ने रहने के बाद जिस दिन चुनाव की घोषणा चुनाव आयोग करने वाला था तो उसी दिन आपकी सरकार ने 833 रूपये देने की घोषणा आपने की, पहले क्यों नहीं की। ऊर्जा मंत्री ने बताया कि 833 रुपये देने की घोषणा आपने क्यों कि आप जानते थे कि आप चुनाव हार रहे हैं और 833 रु. आपको देने नहीं पडेंगे, क्योंकि आपने बजट में वित्तीय प्रावधान इसके लिए नहीं रखा था। हमने 833 रूपये प्रतिमाह को बढ़ाकर 12000 रूपये वार्षिक अनुदान किया तो आपको परेशानी है कि किसानों को यह सरकार मदद क्यों कर रही है, जबकि केन्द्र सरकार किसानों पर 3 काले कानूनों को लागू करके उनको बड़े बिजनस-मैन के हवाले करने का काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि हमारी सरकार कहती है वह करती है, केवल “विज्ञापन“ ट्वीट के आधार पर नहीं वह धरातल पर जाकर काम करती है। उन्होंने कहा कि जब पहली बार श्री अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने थे तब उन्होंने घोषणा की थी कि खेती की बिजली के दाम नहीं बढ़ेगें और हमने तबसे 90 पैसे प्रति यूनिट बिजली किसानों को दे रहे है। सरकार ने यह घोषणा की थी कि 5 वर्ष तक किसानों की विद्युत दरों में वृद्धि का भार सरकार स्वयं वहन करेगी। इसके अनुरूप विद्युत विनियामक आयोग दिनांक 06.02.2020 के आदेश द्वारा किसानों के लिए बढ़ायी गई विद्युत दरों का भार राज्य सरकार वहन कर रही है। साथ ही बीपीएल उपभोक्ताओं व छोटे घरेलू उपभोक्ताओं के लिए टैरिफ में अनुदान दिया जा रहा है। छोटे घरेलू उपभोक्ताओं के स्थाई शुल्क की गई वृद्धि का भार भी राज्य सरकार वहन कर रही है। इस प्रकार विद्युत दरों में वृद्धि से 20 लाख बीपीएल, 42 लाख छोटे घरेलू उपभोक्ताओं व 14 लाख किसानों सहित 76 लाख उपभोक्ताओं पर विद्युत दरों में कोई प्रभावी वृद्धि नहीं की गई है।
ऊर्जा मंत्री ने कृषि विद्युत कनेक्शन के संबंध में बताया कि गत सरकार के समय 5 साल में 2 लाख 68 हजार 522 कृषि कनेक्शन दिये, हमने ढाई साल में 2 लाख 19 हजार 779 कृषि कनेक्शन दिये है, बजट घोषणा के अनुसार वर्तमान वित्तीय वर्ष में राज्य में 50 हजार कृषि कनेक्शन दिया जाना लक्षित है। दिनांक 12.09.2021 तक 33,240 कृषि कनेक्शन जारी किये जा चुके हैं। शेष कृषि कनेक्शनों को जारी किये जाने हेतु आवश्यक संसाधन एवं सामान की समुचित व्यवस्था की गई है।
उन्होंने कहा कि यह सही है कि उत्पादन निगम की इकाइयों से कोयले की कमी के कारण विद्युत उत्पादन अगस्त माह में बाधित हुआ। कालीसिंध की 600 मेगावॉट की एक इकाई से 11 अगस्त एवं 600 मेगावॉट की दूसरी इकाई से 15 अगस्त को उत्पादन बंद हुआ एवं सूरतगढ़ की 6 इकाइयों ( 250 मेगावॉट प्रत्येक) से भी 25 व 26 अगस्त से विद्युत उत्पादन बंद हुआ। उत्पादन निगम की कोटा (1240 मेगावॉट), सूरतगढ़ (1500 मेगावॉट) एवं छबड़ा (500 मेगावॉट) कुल 3240 मेगावॉट की इकाइयों हेतु कोल इंडिया लि. से कोयले की आपूर्ति होती हैं एवं अन्य विद्युतगृहों छबड़ा (1820 मेगावॉट ), कालीसिंध (1200 मेगावॉट ) एवं सूरतगढ़ (660 मेगावॉट) कुल 3620 मेगावॉट हेतु कोयला आपूर्ति उत्पादन निगम की स्वयं की खदान पारसा ईस्ट- कांता बासन से होती है। कोयले का राष्ट्रीयकरण किया हुआ है। इसकी आपूर्ति का नियंत्रण भारत सरकार के हाथों में है।
डॉ. कल्ला ने कहा कि ऎसा नहीं है कि उत्पादन निगम की इकाईयों में ही कोयले की कमी हुई है, देश के उत्तरी भाग में स्थित 41780 मेगावॉट क्षमता की 33 परियोजनाओं जिनको कोयले की आपूर्ति कोल इंडिया लि. द्वारा होती है, अगस्त माह में कोयले की कमी हुई एवं इसके चलते एनटीपीसी के दादरी, ऊंचाहार एवं तांडा के साथ ही हरियाणा राज्य की इकाइयों से विद्युत उत्पादन ठप हुआ है। साथ ही कवाई स्थित अडानी विद्युतगृह की 660 मेगावॉट की एक इकाई भी इस दौरान बंद रही है। कोयले की आपूर्ति में सुधार होने के पश्चात कालीसिंध विद्युतगृह की एक इकाई दिनांक 29.08.2021 से, दूसरी इकाई से दिनांक 08.09.2021 से एवं सूरतगढ़ की दो इकाइयों ( 250 मेगावॉट प्रत्येक) से दिनांक 08.09.2021 से विद्युत उत्पादन पुनः प्रारंभ हुआ।
ऊर्जा मंत्री ने कहा कि वर्षा ऋतु के कारण कोयले की खदानों में पानी भरने से कोयले के उत्खनन एवं आपूर्ति बाधित हुई है। उत्पादन निगम को प्रतिदिन 2-3 कोल रैक ही मिल पा रही थी। हमने दिल्ली जाकर इस हेतु चर्चा की तथा हमने लोकसभा अध्यक्ष एवं कोयला मंत्री से चर्चा कर उनके सहयोग से कोयले की आपूर्ति में सुधार किया। वर्तमान में उत्पादन निगम को कोल इंडिया की कंपनियों एनसीएल एवं एसईसीएल से प्रतिदिन 8 से 9 कोल रैक की आपूर्ति हो रही है। उन्होंने प्रतिपक्ष के सदस्यों से कहा कि केंद्र में आप ही की सरकार है, लिहाजा आपका दायित्व बनता है कि केन्द्र सरकार पर दबाव बनाये और अपने 25 संसद सदस्यों से कहें कि कोल इण्डिया से बात करें ताकि राजस्थान के विद्युतगृहों को कोयले की पूर्ण आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकें।
उन्होंने बताया कि प्रदेश की वर्तमान में कुल उत्पादन क्षमता 22368.90 मेगावाट है, जिसमें से राज्य के खुद के स्त्रोतों की क्षमता 7939.35 मेगावॉट है जबकि केन्द्र सरकार के उपक्रमों से 3321.96 मेगावॉट व साझेदारी परियोजनाओं से 853 मेगावाट क्षमता आवंटित है। इसके अलावा निजी क्षेत्र से 3742 मेगावाट व अपारंपरिक स्त्रोतों से 6145 (सौर ऊर्जा 2678.10 मेगावाट, पवन ऊर्जा 3742 मेगावाट तथा बायोमास ऊर्जा 101.95 मेगावाट) क्षमता आवंटित है। प्रायः 8 से 10 हजार मेगावाट बिजली कोल आधारित संयंत्रों से हमेशा उपलब्ध रहती है। अपारंपरिक स्त्रोंतो से बिजली की उपलब्धता सतत् रूप से नहीं रहती है।
ऊर्जा मंत्री ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा बिजली दर अधिक होते हुए भी एक्सचेंज से जितनी सम्भव हो सके उतनी बिजली खरीदी गई, ताकि राज्य के किसानों को पर्याप्त बिजली उपलब्ध कराई जा सके, जिससे की उनकी फसल खराब न हो सके। उपभोक्ताओं से विद्युत उपभोग के बाबत प्राप्त राशि का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा बिजली उत्पादन कंपनियों को क्रय की गयी बिजली के पेटे भुगतान किया जाता है। गत सरकार के कार्यकाल में 770 मेगावाट सौर एवं 1189 मेगावाट पवन ऊर्जा खरीद हेतु करार किये गए जिनकी दर क्रमशः 4.35 व 5.50 रुपये प्रति यूनिट व 5.12 6.02 रुपये प्रति यूनिट हैं। जबकि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में 2500 मेगावाट सौर ऊर्जा व 1200 मेगावाट पवन ऊर्जा खरीद हेतु करार किये जिसकी दर क्रमशः 2.0 - 2.50 रुपये प्रति यूनिट व 2.77 व 2.78 रुपये प्रति यूनिट है। सौर एवं पवन ऊर्जा जब कम दर पर उपलब्ध हो रही थी तब आपकी सरकार ने दोगुनी दर पर 25 साल के लिए महंगी बिजली लेने के लिए करार क्यों किया था बिजली खरीद की दर को कम करने के लिए ऊर्जा विकास निगम द्वारा केन्द्रीय विद्युत संयंत्रों से आवंटित 252 मेगावाट क्षमता (जिनसे औसत विद्युत दर वर्ष 2020-21 में करीब 9.51 रूपये प्रति यूनिट है) को समाप्त किया जा रहा है। इस क्षमता के समर्पण से पिछले वर्ष बाजार में प्रचलित खरीद दर के सापेक्ष 205 करोड़ प्रतिवर्ष की बचत सम्भावित है।
उन्होंने कहा कि आपकी सरकार द्वारा ही स्मार्ट मीटरिंग की योजना को लागू किया था एवं पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल के समय जयपुर डिस्कॉम के जयपुर शहर के 7 सब-डिवीजन एवं टोंक वृत्त के एक सब-डिवीजन में 2,82,000 मीटर लगाने के कार्य का वर्क ऑर्डर 20 अगस्त, 2018 को जारी किया था। इसके अलावा भरतपुर, धौलपुर, करौली, बारां, झालावाड़ एवं बूंदी जिलों के 20 खण्डों में 1,49,000 मीटर लगाने का कार्य 24 अगस्त, 2018 को दिया गया। इसी तरह अजमेर एवं जोधपुर डिस्कॉम में 2,92,000 मीटर लगाने का कार्य भी संवेदकों को आवंटित किया गया। मैं यहाँ ये बताना चाहूँगा कि प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाने को केन्द्र सरकार द्वारा अपनी अधिसूचना दिनांक 17 अगस्त, 2021 के द्वारा अनिवार्य कर दिया है एवं सभी वितरण कंपनियों को समयबद्ध रूप से मार्च, 2025 तक कृषि के अतिरिक्त समस्त उपभोक्ताओं को स्मार्ट मीटरिंग के माध्यम से विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने के निर्देश दिये हैं। भारत सरकार का समस्त उपभोक्ताओं को स्मार्ट मीटर के समयबद्ध रूप से लगाने की शर्त भारत सरकार की नवीन योजना का भी अभिन्न अंग है।
उन्होंने बताया कि बून्दी जिले के केशोरायपाटन में ग्राम करवाला में सिंगल फेज के 10 ट्रान्सफॉर्मर लगे हुए हैं। इनमें से एक 16 केवीए का ट्रान्सफॉर्मर दिनांक 11 सितम्बर 2021 को जल गया था जिस पर 15 उपभोक्ता थे, इसे दिनांक 12 सितम्बर 2021 को बदल दिया गया है। जले हुए ट्रान्सफॉर्मरों को समय पर बदला जा रहा है। केवल बकाया राशि वाले ट्रान्सफॉर्मर बदलने लंबित हैं। वर्तमान में 11 केवी करवाला फीडर पर औसतन 23 घण्टे सिंगल फेज आपूर्ति एवं 6-7 घण्टे थ्री फेज विद्युत आपूर्ति की जा रही है।
उन्होंने जालोर विधायक द्वारा उठाये गये मुद्दे पर कहा कि वर्तमान में राज्य में थ्री फेज ट्रान्सफॉर्मर पूर्ण रूप से उपलब्ध हैं। जालोर जिले में कृषि श्रेणी में खराब / जले हुये विद्युत ट्रांसफॉर्मरों को जलने / खराब होने की सूचना प्राप्त होने के 72 घंटे की समयावधि में बदला जा रहा है।
डॉ. कल्ला ने बताया कि सरकार के कार्यकाल में वित्तीय कुप्रबंधन करके विद्युत कंपनियों को उधार एवं बकाया की गर्त में पहुँचा दिया। पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान वित्तीय वर्ष 2017-18 एवं 2018-19 में डिस्कॉम्स का ओपरेशनल घाटा क्रमशः 9,827 एवं 9,393 करोड़ रूपये था, जो कि वर्तमान सरकार के कार्यभार संभालने के बाद वित्तीय वर्ष 2019-20 में 6,740 करोड़ एवं वित्तीय वर्ष 2020-21 में 3,900 करोड़ रूपये अनुमानित है। इस तरह सरकार डिस्कॉम्स् के वित्तीय घाटे को कम करने के लिए काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि घाटा कम होगा तो डिस्कॉम्स् को लोन कम लेना पडेगा एवं उपभोक्ताओं के बिलो में वृद्धि नहीं होगी। ऊर्जा मंत्री ने बताया कि हमारी सरकार ने पिछले कार्यकाल के समय डिस्कॉम्स का 31 मार्च 2014 को कुल संकलित वित्तीय घाटा 68,938 करोड़ रूपये छोड़ा था, जो कि पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान 31 मार्च 2019 को 89,854 करोड़ रूपये हो गया। यह घाटा वित्तीय वर्ष 31 मार्च 2020 को घटकर 86,868 करोड़ रह गया। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान सरकार द्वारा उदय योजना के तहत डिस्कॉम्स् के 62,422 करोड़ रूपये के बकाया ऋण राज्य सरकार ने लिया था। योजना की मूल भावना के अनुसार सरकार द्वारा इन ऋणों को लिए जाने तक इन पर ब्याज का पूर्ण भार स्वयं उठाना था। परन्तु राज्य सरकार द्वारा फरवरी 2018 में उपरोक्त ब्याज की वसूली डिस्कॉम्स से करने का निर्णय लिया। इन ऋणों पर व्याज की कुल वसूली रू 10,860 करोड़ रू. की गई। अगर यह वसूली नहीं की जाती तो 31 मार्च 2020 को कुल संकलित घाटा 76,008 करोड़ रूपये ही होता जो कि 31 मार्च 2019 को पिछली सरकार द्वारा छोड़े गए कुल संकलित घाटे 89,854 करोड़ रूपये से काफी कम होता।
ऊर्जा मंत्री ने निगम की वित्तीय स्थिति के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पिछले 5 सालों में उत्पादन निगम ने डिस्कॉम्स को बिजली तो दी लेकिन आपने उत्पादन निगम को उस बिजली के बदले जो भुगतान करना था, वो नहीं किया। उन्होंने बताया कि जनवरी, 2014 से दिसम्बर, 2018 तक उत्पादन निगम के 56046 करोड़ रूपये के बिजली का बिल राजस्थान डिस्कॉम्स को दिया लेकिन राजस्थान डिस्कॉम्स द्वारा केवल 40413 करोड़ रूपये का भुगतान ही उत्पादन निगम को किया। उन्होंने बताया कि आपके समय में डिस्कॉम्स ने ये भुगतान क्यों नहीं किया क्योंकि डिस्कॉम्स ने आपके समय में 22000 करोड़ रूपये का कैपिटल व्यय जरूरत ना होने पर भी किया। ये अनावश्यक व्यय किया गया। डिस्कॉम्स के द्वारा उत्पादन निगम को भुगतान नहीं किया जिसके कारण से डिस्कॉम्स की बकाया राशि 642 करोड़ रूपये से बढ़कर 18005 करोड़ रूपये हुई लेकिन उस समय राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने इस कमी को पूरा करने के लिए वर्किग कैपिटल लोन जो कि दिसम्बर 2013 में 790 करोड़ रूपये था वह बढ़कर दिसम्बर, 2018 में 18,588 करोड़ रूपये हो गया।
उन्होंने कहा कि मैसर्स अडानी से मुकदमा हारने के कारण 4700 करोड़ रूपये विद्युत कंपनियों को देना पड़ेगा। उन्होंने इस संबंध में कहा कि गत 5 सालों में जब आपकी सरकार थी तो इस केस की पैरवी पुख्ता रूप से क्यों नहीं की गयी। इसके लिए जो अधिकारी जिम्मेदार थे उनके विरुद्ध क्या कार्यवाही की थी। उच्चतम न्यायालय का निर्णय दिनांक 29 अक्टूबर, 2018 को आया और आपने दिन-रात एक करके दिनांक 17 दिसम्बर 2018 तक 1674.60 करोड रूपये मैसर्स अडानी को भुगतान कर दिया।
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