राजस्थान फाउंडेशन की ओर से प्रवासी बच्चों को राजस्थान की संस्कृति से जोड़ने का अनूठा प्रयास, चल मेरी ढ़ोलकी धमाक धम
जयपुर, 13 दिसम्बर। राजस्थान फाउंडेशन ने रविवार को प्रवासी राजस्थानियों के लिए यहां एक ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजन किया जो प्रवासी परिवारों के बच्चों पर केन्द्रीत था।
राजस्थान फाउंडेशन के आयुक्त श्री धीरज श्रीवास्तव ने बताया कि फाउंडेशन का काम प्रवासियों को उनके माटी से जोड़ना है। उन्होंने बताया कि हमने कई बार देश विदेश में बैठे प्रवासियों से बात की है और हमे बताया गया है कि वे चाहते है कि नई पीढ़ी भी अपने प्रदेश की संस्कृति को जाने इसलिये हमने बच्चों को उनकी माटी की लोककथा सुनाने का एक अनूठा प्रयास किया है।
उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में करीब 150 बच्चें ऑनलाइन रूम पर से जुड़ें और हजारों ने फेसबुक पर इसे लाईव देखा। प्रवासी बच्चो ने बहुत उल्लास के साथ इस कार्यक्रम में भाग लिया।
इस अवसर पर आयुक्त ने ऑनलाइन बच्चों को सम्बोधित करते हुए कहा कि राजस्थान की लोककथाये देश विदेश में बहुत ही मशहूर है, उन्ही में से एक लोककथा व बिज्जी की कहानिया घर घर में जानी जाती है उनमे से एक कहानी हम बच्चो को सुना रहें है।
कार्यक्रम में सीमा मूंदरा जो अमेरिका से ऑनलाइन जुडी थी, उन्होने बडे मज़ेदार ढंग से लोक कथा सुनाई, चल मेरी ढोल की धमाक धम। कार्यक्रम में श्री कैलाश कबीर देथा और श्री कुलदीप कोठारी भी जुड़ें।
कोमल कोठारी ने बच्चो को बताया की अर्ना झरना संग्रहालय में राजस्थान के जनजीवन, पर्यावरण, एवं प्रदर्शनकारी कलाओं की स्थायी एवं अस्थायी झांकियां संजोई गयी हैं। उन्होंने संगीत वाद्यों, कठपुतलियों, आभूषणों, लोकनाट्यों, माह्कव्यों, लोक देवताओं पर विस्तृत अनुसन्धान किया। कार्यक्रम में प्रवासी परिवारों को ये से जानकारी दी गयी, बच्चों को राजस्थान की ऎसी अनूठे तरीके से एक झलक देना उनकी जिज्ञासा को प्रेरित करने का प्रयास है।
कार्यकर्म में ऑस्ट्रेलिया, दुबई, रागून, यूनाइटेडकिंगडम, और अमेरिका से भी बच्चो ने भाग लिया।
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