‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भारतीय सोच हो सकती है बेहतरीन विश्व शासन की कुंजी विश्व सरकार, विश्व संसद और विश्व न्यायालयों की स्थापना के लिए हो कार्य - राज्यपाल
- विश्व के मुख्य न्यायाधीशों का ‘ग्लोबल गवर्नेंस : ए पोस्ट-कोविड इम्परेटिव’ ऑनलाईन सम्मेलन आयोजित
- राजस्थान के राज्यपाल श्री कलराज मिश्र ने दिया मुख्य अतिथि के रूप में संबोधन
- संयुक्त राष्ट्र संघ वैश्विक शासन व्यवस्था के लिए करे आत्ममंथन, भारत को मिले निर्णायक भूमिका
जयपुर, 7 नवम्बर। राज्यपाल श्री कलराज मिश्र ने कहा है कि कोविड के इस दौर में मानव मूल्यों पर ही खतरा नहीं मंडराया है बल्कि वैश्विक शासन व्यवस्था पर भी प्रश्न खड़े हुए हैं। उन्होंने संकट की इस घड़ी में संयुक्त राष्ट्र संघ को गंभीर आत्ममंथन किए जाने की आवश्यकता जताते हुए एक ऎसी नई बाध्यकारी एवं प्रभावशाली वैश्विक शासन व्यवस्था को अपनाए जाने पर जोर दिया है जो संपूर्ण मानव जाति की भलाई के लिए समान रूप से कार्य करे। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत वैश्विक शासन व्यवस्था में भारत को निर्णायक भूमिका दिए जाने की भी मांग की। उन्होंने विश्व सरकार, विश्व संसद और विश्व न्यायालयों की स्थापना के लिए भी वैश्विक स्तर पर कार्य किए जाने पर जोर दिया।
श्री मिश्र आज यहां राजभवन से विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के 21 वें ‘ग्लोबल गवर्नेंस : ए पोस्ट-कोविड इम्परेटिव’ ऑनलाईन सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कोविड-19 के इस दौर में विश्वभर के राष्ट्रों के साझा हितों पर समझ के साथ कार्य किए जाने पर भी आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा कि वैश्विक शासन व्यवस्था की बेहतरी का कार्य संयुक्त राष्ट्र संघ का होता है परन्तु इसमें सदस्य राष्ट्रों को भी एकमत होकर सभी देशों की आवश्यकता के अनुरूप तय रणनीति पर कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की सोच के साथ सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा से यदि सभी विश्व एकमत होकर कार्य करें तो इसके मानवता की भलाई में बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं।
श्री मिश्र ने कहा कि एक मोटे अनुमान के अनुसार कोविड महामारी से विश्वभर में 10 लाख से अधिक मौतें हुई हैं और करोड़ो लोग संक्रमित हुए हैं। विश्व मानवता को इससे गहरा नुकसान पहुंचा है। उन्होंने कोविड से विश्वभर के देशों की चरमरायी अर्थव्यवसथा, उद्योगों को हुए नुकसान और शिक्षा क्षेत्र में पैदा हुई समस्याओं का जिक्र करते हुए कहा भारतीय संस्कृति और जीवन दर्शन को आदर्श मानते हुए भविष्य के लिए कार्य करने का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति कें अधिकारों के साथ दायित्व का संतुलन है। इसी से विश्व भर में मानवीय गरिमा को स्थापित करते हुए वैश्विक शासन की प्रभावी और कारगर व्यवस्था पर कार्य किया जा सकता है।
राज्यपाल ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ‘कत्र्तव्यों के हिमालय से अधिकारों की गंगा बहती है’ वाक्य का उल्लेख करते हुए कहा कि कोविड के इस दौर में सभी राष्ट्र ऎसा कोई कार्य नहीं करें जिससे दूसरे देशों के लोगों की मानवीय गरिमा को नुकसान पहुंचे। उन्होंने विपदा के इस समय में सभी राष्ट्रों को एकमत होकर जरूरतमंद देशों की मदद के लिए तत्पर रहने, एकात्म मानववाद की सोच पर कार्य करने और सांस्कृतिक सहिष्णुता अपनाने पर भी जोर दिया।
श्री मिश्र ने भारतीय संविधान की भी इस अवसर पर विशेष रूप से चर्चा की। उन्होंन कहा कि भारतीय संविधान मानव अधिकारों का वैश्विक दस्तावेज है। मानव अधिकारों की विश्वसनीय व्यवस्था भारतीय संविधान में है। इसलिए विश्व समुदाय को भारतीय संविधान आधारित शासन व्यवस्था को अपनाना चाहिए। उन्होंने विश्व के देशों को राजनीतिक अधिकारों के साथ मानवीय अधिकार-कत्र्तव्यों की पालना किए जाने पर भी जोर दिया। उन्होंने विश्व के न्यायाधीशों की इस बात के लिए सराहना भी की कि वे मानवीय अधिकारों, कर्तव्यों की पालना में अपने स्तर पर न्यायलय निर्णयों के तहत महत्ती कर रहे हैं।
ऑनलाईन सम्मेलन में विश्व न्यायाधीश सम्मेलन के अध्यक्ष ताईवान के डॉ. हौंग ताओ तजे, सुप्रीम कोर्ट ऑफ अपील, मलावी के न्यायमूर्ति श्री एंड्रयू के.सी. कोमोरोस के न्यायमूर्ति श्री शेख सलीम, बेनिक के श्री उस्मेन बटो, दक्षिण सूडान के श्री चैन रेच मदुत, अफ्रीका के संवैधानिक न्यायालयों के सम्मेलन के स्थायी महासचिव श्री सी.सी.जे.ए., मिश्र के सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय के न्यायमूर्ति डॉ. आडेल उमर शेरिफ, दक्षिण अफ्रीका गणराज्य के पूर्व राष्ट्रपति श्री क्गालेमा मोटलन्थे ने भी कोविड के इस दौर में वैश्विक शासन व्यवस्था से संबंधित विचार रखे। सम्मेलन में विश्व के 50 देशों के लगभग 200 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
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