जून में भी बना रह सकता है टिड्डियों का प्रकोप, कई जिलों को मिलकर काम करने की जरूरत
जयपुर,
एक जून। जयपुर में मई के दूसरे सप्ताह में करीब 26 साल
बाद हुआ टिड्डियों का हमला अभी जारी है और जून में और भी भीषण हमले हो सकते हैं।
इससे बचाव के लिए कई स्तर पर तैयारी की जरूरत है जिसमें जयपुर के पड़ोसी जिलों के
साथ ही सीमावर्ती जिलों के साथ भी समन्वित योजना की जरूरत होगी। टिड्डियों के
अण्डे देने की स्थिति में आने में 10-15
दिन ही शेष हैं इसलिए
जिले में सेण्डी सॉयल वाले स्थानों पर विशेष नजर भी रखनी होगी। साथ ही टिड्डियों
के खात्मे के लिए उपयोग किए जाने वाले कीटनाशकों के भी अपने नुकसान हैं, इसे देखते हुए दवा की निर्धारित मात्रा
का ही उपयोग किया जाना चाहिए।
जिला कलक्ट्रेट में सोमवार को जयपुर
में टिड्डियों के हमलों के कारणों,
आने वाले समय में इन
हमलों की गंभीरता जैसे विषयों पर मंथन एवं उनके प्रकोप के निपटने की आगे की रणनीति
की दिशा तय करन के लिए कीट विज्ञानियों, कीटविज्ञान
से जुडे़ शिक्षाविदों,
कृषि, पशुपालन एवं जिला प्रशासन के अधिकारियों
की बैठक अतिरिक्त जिला कलक्टर श्री बीरबल सिंह की अध्यक्षता में हुई।
बैठक में उप निदेशक कृषि विस्तार, जिला परिषद श्री बी.आर.कड़वा ने जिले में
टिड्डियों के अब तक हुए हमलों के पेटर्न एवं उनके नियंत्रण के प्रयासों की जानकारी
दी। प्रोफेसर एवं हेड,
कीट विज्ञान आरएआरआई, दुर्गापुरा, डॉ.ए.एस.बलोदा का कहना था कि टिड्डियों
के स्वार्म से निपटने के लिए दवाओं के उपयोग के अलावा कोई विकल्प अभी नहीं है
लेकिन दवाओं की मात्रा विशेषज्ञों के निर्देशन में ही डाली जानी चाहिए।
जोबनेर कृषि विश्वविद्यालय के
विशेषज्ञों का कहना था कि टिड्डियां जल्द ही अण्डे देने की स्थिति में आ जाएंगी और
जयपुर में चौमूं, जोबनेर, विराटनगर, जयपुर में सेण्डी सॉयल के स्थानों पर
नजर रखनी होगी।
अगर ऎसा हुआ तो इन अण्डों
से निकला निम्फ (फाका) खरीफ की फसलों को नुकसान पहुंचा सकता है। टिड्डियों का रंग
बदलने से उनके मेच्योर होने का पता चल जाएगा।
विशेषज्ञों का मानना था कि जिस जगह
टिड्डी स्वार्म के खात्मे के लिए कीटनाशक छिड़के जाएं वहां कम से कम 10 दिन पशुओं को नहीं चराना चाहिए। अन्यथा
यह कीटनाशक भोजन शृंखला में शामिल हो सकते हैं।
सहायक निदेशक एलडब्ल्यूओ जयपुर श्री सी.एस.रानावत
का कहना था टिड्डी स्वार्म नियंत्रण में अधिकतम सफलता के लिए सुबह 3 बजे से 8 बजे
के बीच इनके खात्मे के लिए ऑपरेशन किया जाना चाहिए।
जोबनेर कृषि महाविद्यालय के प्रो. एवं
अध्यक्ष कीट विभाग श्री के.सी.कुमावत ने टिड्डी के लाइफ साइकिल के बारे में
जानकारी दी एवं इसके बारे में किसानों एवं सामान्य जन को अधिक से अधिक जानकारी
देने की जरूरत बताई ताकि फसलों को बचाया जा सके और मूवमेंट की जानकारी भी मिल सके।
उन्होंने बताया कि दिन बडे़ होने के कारण टिड्डियां अब ज्यादा देर उड रही हैं। हवा
के पेटर्न के कारण सभी बार-बार जयपुर की ओर आ रही हैं।
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