मन की बात 2.0 की 13वीं कड़ी में प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूल पाठ
मेरे प्यारे
देशवासियो, नमस्कार। ‘मन की बात’ ने वर्ष 2020 में
अपना आधा सफ़र अब पूरा कर लिया है। इस दौरान हमने अनेक
विषयों पर बात की। स्वाभाविक है कि जो
वैश्विक महामारी आयी, मानव जाति पर जो संकट
आया, उस पर, हमारी बातचीत कुछ ज्यादा ही रही, लेकिन, इन
दिनों मैं देख रहा हूं, लगातार लोगों में, एक विषय पर चर्चा हो रही है, कि,
आखिर
ये साल कब बीतेगा। कोई किसी को फोन भी
कर रहा है, तो, बातचीत, इसी
विषय से शुरू हो रही है, कि, ये साल जल्दी क्यों नहीं बीत रहा है। कोई लिख रहा है, दोस्तों से बात कर रहा है, कह रहा है, कि,
ये
साल अच्छा नहीं है, कोई कह रहा है 2020 शुभ नहीं है। बस,
लोग
यही चाहते हैं कि किसी भी तरह से ये साल जल्द-से-जल्द बीत जाए।
साथियो, कभी कभी मैं सोचता हूँ, कि,
ऐसा
क्यों हो रहा है, हो सकता है ऐसी
बातचीत के कुछ कारण भी हों। 6-7 महीना पहले, ये,
हम
कहां जानते थे, कि, कोरोना जैसा संकट आएगा और इसके खिलाफ़ ये
लड़ाई इतनी लम्बी चलेगी। ये संकट तो बना ही
हुआ है, ऊपर से, देश में नित नयी चुनौतियाँ सामने आती जा
रही हैं। अभी, कुछ दिन पहले, देश के पूर्वी छोर पर Cyclone Amphan आया,
तो, पश्चिमी छोर पर Cyclone Nisarg आया। कितने ही राज्यों में हमारे किसान भाई–बहन टिड्डी दल के हमले से परेशान हैं, और कुछ नहीं, तो,
देश
के कई हिस्सों में छोटे-छोटे भूकंप रुकने का ही नाम नहीं ले रहे, और इन सबके बीच, हमारे कुछ पड़ोसियों द्वारा जो हो रहा है, देश उन चुनौतियों से भी निपट रहा है। वाकई, एक-साथ
इनती आपदाएं, इस स्तर की आपदाएं, बहुत कम ही देखने-सुनने को मिलती हैं। हालत तो ये हो गयी है, कि,
कोई
छोटी-छोटी घटना भी हो रही है, तो, लोग उन्हें भी इन चुनौतियों के साथ
जोड़कर के देख रहें हैं।
साथियो, मुश्किलें आती हैं, संकट आते हैं, लेकिन, सवाल
यही है, कि, क्या इन आपदाओं की वजह से हमें साल 2020 को ख़राब मान लेना चाहिए? क्या पहले के 6 महीने जैसे बीते, उसकी वजह से, ये,
मान
लेना कि पूरा साल ही ऐसा है, क्या ये सोचना सही है
? जी नहीं। मेरे प्यारे देशवासियो - बिल्कुल नहीं। एक साल में एक चुनौती आए, या,
पचास
चुनौतियां आएँ, नंबर कम-ज्यादा होने
से, वो साल, ख़राब नहीं हो जाता। भारत का इतिहास ही आपदाओं और चुनौतियों
पर जीत हासिल कर, और ज्यादा निखरकर
निकलने का रहा है। सैकड़ों वर्षों तक अलग-
अलग आक्रांताओं ने भारत पर हमला किया, उसे संकटों में डाला, लोगों को लगता था कि भारत की संरचना ही
नष्ट हो जाएगी, भारत की संस्कृति ही
समाप्त हो जाएगी, लेकिन, इन संकटों से भारत और भी भव्य होकर
सामने आया।
साथियो, हमारे यहां कहा जाता है - सृजन शास्वत
है, सृजन निरंतर है।
मुझे एक गीत की कुछ
पंक्तियाँ याद आ रही हैं –
यह कल-कल छल-छल बहती, क्या कहती गंगा धारा ?
युग-युग से बहता आता, यह पुण्य प्रवाह हमारा।
उसी गीत में, आगे आता है –
क्या उसको रोक सकेंगे, मिटनेवाले मिट जाएं,
कंकड़-पत्थर की हस्ती, क्या बाधा बनकर आए।
भारत में भी, जहां, एक
तरफ़ बड़े-बड़े संकट आते गए, वहीँ, सभी बाधाओं को दूर करते हुए अनेकों-अनेक
सृजन भी हुए। नए साहित्य रचे गए, नए अनुसंधान हुए, नए सिद्धांत गड़े गए, यानि, संकट
के दौरान भी, हर क्षेत्र में, सृजन की प्रक्रिया जारी रही और हमारी
संस्कृति पुष्पित-पल्लवित होती रही, देश आगे बढ़ता ही रहा। भारत ने हमेशा, संकटों को, सफलता की सीढियों में परिवर्तित किया है। इसी भावना के साथ, हमें, आज
भी, इन सारे संकटों के
बीच आगे बढ़ते ही रहना है। आप भी इसी विचार से
आगे बढ़ेंगे, 130 करोड़ देशवासी आगे
बढ़ेंगे, तो, यही साल, देश
के लिये नए कीर्तिमान बनाने वाला साल साबित होगा। इसी साल में, देश,
नये
लक्ष्य प्राप्त करेगा, नयी उड़ान भरेगा, नयी ऊँचाइयों को छुएगा। मुझे, पूरा
विश्वास, 130 करोड़ देशवासियों की
शक्ति पर है, आप सब पर है, इस देश की महान परम्परा पर है।
मेरे प्यारे
देशवासियो, संकट चाहे जितना भी
बड़ा हो, भारत के संस्कार, निस्वार्थ भाव से सेवा की प्रेरणा देते
हैं। भारत ने जिस तरह
मुश्किल समय में दुनिया की मदद की, उसने आज, शांति और विकास में भारत की भूमिका को
और मज़बूत किया है। दुनिया ने इस दौरान
भारत की विश्व बंधुत्व की भावना को भी महसूस किया है, और इसके साथ ही, दुनिया ने अपनी संप्रभुता और सीमाओं की
रक्षा करने के लिए भारत की ताकत और भारत के commitment
को
भी देखा है। लद्दाख में भारत की
भूमि पर, आँख उठाकर देखने
वालों को, करारा जवाब मिला है। भारत, मित्रता
निभाना जानता है, तो, आँख-में-आँख डालकर देखना और उचित जवाब
देना भी जानता है। हमारे वीर सैनिकों ने
दिखा दिया है, कि, वो,
कभी
भी माँ भारती के गौरव पर आँच नहीं आने देंगे।
साथियो, लद्दाख में हमारे जो वीर जवान शहीद हुए
हैं, उनके शौर्य को पूरा
देश नमन कर रहा है, श्रद्धांजलि दे रहा
है। पूरा देश उनका कृतज्ञ
है, उनके सामने नत-मस्तक
है। इन साथियों के
परिवारों की तरह ही, हर भारतीय, इन्हें खोने का दर्द भी अनुभव कर रहा है। अपने वीर-सपूतों के बलिदान पर, उनके परिजनों में गर्व की जो भावना है, देश के लिए जो ज़ज्बा है - यही तो देश की
ताकत है। आपने देखा होगा, जिनके बेटे शहीद हुए, वो माता-पिता, अपने दूसरे बेटों को भी, घर के दूसरे बच्चों को भी, सेना में भेजने की बात कर रहे हैं। बिहार के रहने वाले शहीद कुंदन कुमार के
पिताजी के शब्द तो कानों में गूँज रहे हैं। वो
कह रहे थे, अपने पोतों को भी, देश की रक्षा के लिए, सेना में भेजूंगा। यही हौंसला हर शहीद के परिवार का है। वास्तव में, इन परिजनों का त्याग पूजनीय है। भारत-माता की रक्षा के जिस संकल्प से
हमारे जवानों ने बलिदान दिया है, उसी संकल्प को हमें
भी जीवन का ध्येय बनाना है, हर देश-वासी को बनाना
है। हमारा हर प्रयास इसी
दिशा में होना चाहिए, जिससे, सीमाओं की रक्षा के लिए देश की ताकत बढ़े, देश और अधिक सक्षम बने, देश आत्मनिर्भर बने - यही हमारे शहीदों
को सच्ची श्रद्धांजलि भी होगी। मुझे, असम से रजनी जी ने लिखा है, उन्होंने, पूर्वी
लद्दाख में जो कुछ हुआ, वो देखने के बाद, एक प्रण लिया है - प्रण ये, कि,
वो
local ही खरीदेंगे, इतना ही नहीं local के लिए vocal भी
होगी। ऐसे संदेश, मुझे, देश
के हर कोने से आ रहे हैं। बहुत से लोग, मुझे पत्र लिखकर बता रहे हैं, कि,
वो
इस ओर बढ़ चले हैं। इसी तरह, तमिलनाडु के मदुरै से मोहन रामामूर्ति
जी ने लिखा है, कि, वो,
भारत
को defence के क्षेत्र में
आत्मनिर्भर बनते हुए देखना चाहते हैं।
साथियो, आज़ादी के पहले हमारा देश defence sector में दुनिया के कई देशों से आगे था। हमारे यहाँ अनेकों ordinance फैक्ट्रियां होती थीं। उस समय कई देश, जो,
हमसे
बहुत पीछे थे, वो, आज हमसे आगे हैं। आज़ादी के बाद defence sector में हमें जो प्रयास करने चाहिए थे, हमें अपने पुराने अनुभवों का जो लाभ
उठाना चाहिए था, हम उसका लाभ नहीं उठा
पाए। लेकिन, आज defence
sector में, technology के क्षेत्र में, भारत आगे बढ़ने का निरंतर प्रयास कर रहा
है, भारत आत्मनिर्भरता की
तरफ कदम बढ़ा रहा है।
साथियो, कोई भी मिशन, People’s Participation जन-भागीदारी के बिना
पूरा नहीं हो सकता, सफल नहीं हो सकता, इसीलिए, आत्मनिर्भर
भारत की दिशा में, एक नागरिक के तौर पर, हम सबका संकल्प, समर्पण और सहयोग बहुत जरूरी है, अनिवार्य है। आप,
local खरीदेंगे, local के लिए vocal होंगे, तो समझिए, आप, देश को मजबूत करने में अपनी भूमिका निभा
रहे हैं। ये भी, एक तरह से देश की सेवा ही है। आप,
किसी
भी profession में हों, हर-एक जगह, देश-सेवा का बहुत scope होता ही है। देश की आवश्यकता को समझते हुए, जो भी कार्य करते हैं, वो,
देश
की सेवा ही होती है। आपकी यही सेवा, देश को कहीं- न-कहीं मजबूत भी करती है, और,
हमें, ये भी याद रखना है - हमारा देश जितना
मजबूत होगा, दुनिया में शांति की
संभावनाएं भी उतनी ही मजबूत होंगी।
हमारे
यहाँ कहा जाता है -
विद्या विवादाय धनं
मदाय, शक्ति: परेषां
परिपीडनाय।
खलस्य साधो: विपरीतम्
एतत्, ज्ञानाय दानाय च
रक्षणाय।|
अर्थात, अगर स्वभाव से दुष्ट है, तो,
विद्या
का प्रयोग व्यक्ति विवाद में, धन का प्रयोग घमंड
में, और ताकत का प्रयोग
दूसरों को तकलीफ देने में करता है।
लेकिन, सज्जन की विद्या, ज्ञान के लिए, धन मदद के लिए, और ताकत, रक्षा
करने के लिए इस्तेमाल होती है। भारत ने अपनी ताकत
हमेशा इसी भावना के साथ इस्तेमाल की है। भारत
का संकल्प है - भारत के स्वाभिमान और संप्रभुता की रक्षा। भारत का लक्ष्य है – आत्मनिर्भर भारत। भारत की परंपरा है – भरोसा, मित्रता। भारत का भाव है – बंधुता, हम
इन्हीं आदर्शों के साथ आगे बढ़ते रहेंगे।
मेरे प्यारे
देशवासियो, कोरोना के संकट काल
में देश lockdown से बाहर निकल आया है। अब हम unlock के
दौर में हैं। unlock के इस समय में, दो बातों पर बहुत focus करना है - कोरोना को हराना और
अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना, उसे ताकत देना। साथियो, lockdown से ज्यादा सतर्कता हमें unlock
के
दौरान बरतनी है। आपकी सतर्कता ही आपको
कोरोना से बचाएगी। इस बात को हमेशा याद
रखिए कि अगर आप mask नहीं पहनते हैं, दो गज की दूरी का पालन नहीं करते हैं, या फिर, दूसरी
जरुरी सावधानियां नहीं बरतते हैं, तो, आप अपने साथ-साथ दूसरों को भी जोखिम में
डाल रहे हैं। खास-तौर पर, घर के बच्चों और बुजुर्गों को, इसीलिए, सभी
देशवासियों से मेरा निवेदन है और ये निवेदन मैं बार-बार करता हूँ और मेरा निवेदन
है कि आप लापरवाही मत बरतिये, अपना भी ख्याल रखिए, और,
दूसरों
का भी।
साथियो, unlock के दौर में बहुत सी ऐसी चीजें भी unlock हो रही हैं, जिनमें भारत दशकों से बंधा हुआ था। वर्षों से हमारा mining sector lockdown में था। Commercial Auction को मंजूरी देने के एक
निर्णय ने स्थिति को पूरी तरह से बदल दिया है। कुछ ही दिन पहले space sector में ऐतिहासिक सुधार किए गए। उन सुधारों के जरिए वर्षों से lockdown में जकड़े इस sector को आजादी मिली। इससे आत्मनिर्भर भारत के अभियान को न
केवल गति मिलेगी, बल्कि देश technology में भी advance बनेगा। अपने कृषि क्षेत्र को देखें, तो,
इस
sector में भी बहुत सारी
चीजें दशकों से lockdown में फसी थीं। इस sector
को
भी अब unlock कर दिया गया है। इससे जहां एक तरफ किसानों को अपनी फसल
कहीं पर भी, किसी को भी, बेचने की आजादी मिली है, वहीँ, दूसरी
तरफ, उन्हें अधिक ऋण मिलना
भी सुनिश्चित हुआ है, ऐसे, अनेक क्षेत्र हैं जहाँ हमारा देश इन सब
संकटों के बीच, ऐतिहासिक निर्णय लेकर, विकास के नये रास्ते खोल रहा है।
मेरे प्यारे
देशवासियो, हर महीने, हम ऐसी ख़बरें पढ़ते और देखते हैं, जो हमें भावुक कर देती हैं। यह,
हमें, इस बात का स्मरण कराती हैं, कि,
कैसे, हर भारतीय एक-दूसरे की मदद के लिए तत्पर
हैं, वह, जो कुछ भी कर सकता है, उसे करने में जुटा है।
अरुणाचल प्रदेश की एक
ऐसी ही प्रेरक कहानी, मुझे, media में पढ़ने को मिली। यहां, सियांग
जिले के मिरेम गांव ने वो अनोखा कार्य कर दिखाया, जो
समूचे भारत के लिए, एक मिसाल बन गया है। इस गांव के कई लोग, बाहर रहकर, नौकरी करते हैं। गांव वालों ने देखा कि कोरोना महामारी
के समय, ये सभी, अपने गांव की ओर लौट रहे हैं। ऐसे में, गांव
वालों ने, पहले से ही गांव के
बाहर quarantine का इंतजाम करने का
फैसला किया। उन्होंने, आपस में मिलकर, गांव से कुछ ही दूरी पर, 14 अस्थायी झोपड़ियाँ बना दीं, और ये तय किया, कि,
जब, गांव वाले लौटकर आएंगे तो उन्हें इन्हीं
झोपड़ियों में कुछ दिन quarantine में रखा जाएगा। उन झोपड़ियों में शौचालय, बिजली-पानी समेत, दैनिक जरुरत की हर तरह की सुविधा उपलब्ध
करायी गयी। जाहिर है, मिरेम गांव के लोगों के इस सामूहिक
प्रयास और जागरूकता ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया।
साथियो, हमारे यहां कहा जाता है -
स्वभावं न जहाति एव, साधु: आपद्रतोपी सन।
कर्पूर: पावक स्पृष्ट:
सौरभं लभतेतराम।|
अर्थात, जैसे कपूर, आग में तपने पर भी अपनी सुगंध नहीं
छोड़ता, वैसे ही अच्छे लोग
आपदा में भी अपने गुण, अपना स्वभाव नहीं
छोड़ते। आज, हमारे देश की जो श्रमशक्ति है, जो श्रमिक साथी हैं, वो भी, इसका
जीता जागता उदाहरण हैं। आप देखिए, इन दिनों हमारे प्रवासी श्रमिकों की ऐसी
कितनी ही कहानियां आ रही हैं जो पूरे देश को प्रेरणा दे रही हैं। यू.पी. के बाराबंकी में गांव लौटकर आए
मजदूरों ने कल्याणी नदी का प्राकृतिक स्वरूप लौटाने के लिए काम शुरू कर दिया। नदी का उद्धार होता देख, आस-पास के किसान, आस-पास के लोग भी उत्साहित हैं। गांव में आने के बाद, quarantine centre में रहते हुए, isolation
centre में
रहते हुए, हमारे श्रमिक साथियों
ने जिस तरह अपने कौशल्य का इस्तेमाल करते हुए अपने आस-पास की स्थितियों को बदला है, वो अद्भुत है, लेकिन, साथियो, ऐसे कितने ही किस्से कहानियां देश के
लाखों गांव के हैं, जो, हम तक नहीं पहुंच पाए हैं।
जैसा हमारे देश का
स्वाभाव है, मुझे विश्वास है, साथियो, कि
आपके गांव में भी, आपके आस-पास भी, ऐसी अनेक घटनाये घटी होंगी। अगर,
आपके
ध्यान में ऐसी बात आयी है, तो, आप,
ऐसी
प्रेरक घटना को मुझे जरूर लिखिए। संकट के इस समय में, ये सकारात्मक घटनाएँ, ये कहानियाँ, औरों को भी प्रेरणा देंगी।
मेरे प्यारे
देशवासियो, कोरोना वायरस ने
निश्चित रूप से हमारे जीवन जीने के तरीकों में बदलाव ला दिया है। मैं,
London से
प्रकाशित Financial Times में एक बहुत ही दिलचस्प
लेख पढ़ रहा था। इसमें लिखा था, कि,
कोरोना
काल के दौरान अदरक, हल्दी समेत दूसरे
मसालों की मांग, एशिया के आलावा, अमेरिका तक में भी बढ़ गई है। पूरी दुनिया का ध्यान इस समय अपनी immunity बढ़ाने पर है, और, immunity बढ़ाने वाली इन चीजों का संबंध हमारे देश
से है। हमें, इनकी खासियत, विश्व के लोगों को ऐसी सहज और सरल भाषा
में बतानी चाहिए, जिससे वे आसानी से
समझ सकें और हम एक Healthier Planet बनाने में अपना
योगदान दे सकें।
मेरे प्यारे
देशवासियो, कोरोना जैसा संकट
नहीं आया होता, तो शायद, जीवन क्या है, जीवन क्यों है, जीवन कैसा है, हमें, शायद, ये,
याद
ही नहीं आता। कई लोग, इसी वजह से, मानसिक तनावों में जीते रहे हैं। तो,
दूसरी
ओर, लोगों ने मुझे ये भी share किया है, कि, कैसे lockdown के
दौरान, खुशियों के छोटे-छोटे
पहलू भी - उन्होंने जीवन में re-discover किए हैं। कई लोगों ने, मुझे, पारम्परिक in-door games खेलने और पूरे परिवार के साथ उसका आनंद
लेने के अनुभव भेजे हैं।
साथियो, हमारे देश में पारम्परिक खेलों की बहुत
समृद्ध विरासत रही है। जैसे, आपने एक खेल का नाम सुना होगा – पचीसी। यह खेल तमिलनाडु में “पल्लान्गुली”, कर्नाटक में ‘अलि गुलि मणे’ और आन्ध्र प्रदेश में “वामन गुंटलू” के नाम से खेला जाता है। ये एक प्रकार का Strategy Game है,
जिसमें, एक board
का
उपयोग किया जाता है। इसमें, कई खांचे होते हैं, जिनमें मौजूद गोली या बीज को खिलाडियों
को पकड़ना होता है। कहा जाता है कि यह game दक्षिण भारत से दक्षिण-पूर्व एशिया और
फिर दुनिया में फैला है।
साथियो, आज हर बच्चा सांप-सीढ़ी के खेल के बारे
में जानता है। लेकिन, क्या आपको पता है कि यह भी एक भारतीय
पारंपरिक game का ही रूप है, जिसे मोक्ष पाटम या परमपदम कहा जाता है। हमारे यहाँ का एक और पारम्परिक गेम रहा
है – गुट्टा। बड़े भी गुट्टे खेलते हैं और बच्चे भी - बस, एक ही size के
पांच छोटे पत्थर उठाए और आप गुट्टे खेलने के लिए तैयार। एक पत्थर हवा में उछालिए और जब तक वो
पत्थर हवा में हो आपको जमीन में रखे बाकी पत्थर उठाने होते हैं। आमतौर पर हमारे यहाँ indoor खेलों में कोई बड़े साधनों की जरूरत नहीं
होती है। कोई एक chalk या पत्थर ले आता है, उससे जमीन पर ही कुछ लकीरे खींच देता और
फिर खेल शुरू हो जाता है। जिन खेलों में dice की जरूरत पड़ती है, कौड़ियों से या इमली के बीज से भी काम चल
जाता है।
साथियो, मुझे मालूम है, आज,
जब
मैं ये बात कर रहा हूँ, तो, कितने ही लोग अपने बचपन में लौट गए
होंगे, कितनों को ही अपने
बचपन के दिन याद आ गए होंगे। मैं यही कहूँगा कि उन
दिनों को आप भूले क्यों हैं? उन खेलों को आप भूले
क्यों हैं? मेरा, घर के नाना-नानी, दादा-दादी, घर के बुजुर्गों से आग्रह है, कि,
नयी
पीढ़ी में ये खेल आप अगर transfer नहीं करेंगे तो कौन
करेगा! जब online पढ़ाई की बात आ रही है, तो balance
बनाने
के लिए, online खेल से मुक्ति पाने
के लिए भी, हमें, ऐसा करना ही होगा। हमारी युवा पीढ़ी के लिए भी, हमारे start-ups के लिए भी, यहाँ, एक नया अवसर है, और,
मजबूत
अवसर है। हम भारत के पारम्परिक indoor Games को नये और आकर्षक रूप में प्रस्तुत करें। उनसे जुड़ी चीजों को जुटाने वाले, supply करने वाले, start-ups बहुत popular हो
जाएँगे, और, हमें ये भी याद रखना है, हमारे भारतीय खेल भी तो local हैं,
और
हम local के लिए vocal होने का प्रण पहले ही ले चुके हैं, और,
मेरे
बाल-सखा मित्रों, हर घर के बच्चों से, मेरे नन्हें साथियों से भी, आज,
मैं
एक विशेष आग्रह करता हूँ। बच्चों, आप मेरा आग्रह मानेगें न? देखिये, मेरा
आग्रह है, कि, मैं जो कहता हूँ, आप,
जरूर
करिए, एक काम करिए – जब थोड़ा समय मिले, तो,
माता-पिता
से पूछकर मोबाइल उठाइए और अपने दादा-दादी, नाना-नानी या घर में
जो भी बुर्जुर्ग है, उनका interview record कीजिए, अपने
मोबाइल फ़ोन में record करिए। जैसे आपने टीवी पर देखा होगा ना, कैसे पत्रकार interview करते हैं, बस
वैसा ही interview आप कीजिए, और,
आप, उनसे सवाल क्या करेंगे? मैं आपको सुझाव देता हूँ। आप,
उनसे
जरुर पूछिए, कि, वो,
बचपन
में उनका रहन-सहन कैसा था, वो कौन से खेल खेलते
थे, कभी नाटक देखने जाते
थे, सिनेमा देखने जाते थे, कभी छुट्टियों में मामा के घर जाते थे, कभी खेत-खलियान में जाते थे, त्यौहार कैसे मानते थे, बहुत सी बातें आप उनको पूछ सकते हैं, उनको भी, 40-50 साल, 60 साल पुरानी अपनी जिंदगी में जाना, बहुत, आनंद
देगा और आपके लिए 40-50 साल पहले का
हिंदुस्तान कैसा था, आप, जहाँ रहते हैं, वो इलाका कैसा था, वहाँ परिसर कैसा था, लोगों के तौर-तरीके क्या थे - सब चीजें, बहुत आसानी से, आपको, सीखने
को मिलेगी, जानने को मिलेगी, और,
आप
देखिए, आपको, बहुत मजा आएगा, और,
परिवार
के लिए एक बहुत ही अमूल्य ख़जाना, एक अच्छा video album भी बन जाएगा।
साथियो, यह सत्य है - आत्मकथा या जीवनी, autobiography या biography,
इतिहास
की सच्चाई के निकट जाने के लिए बहुत ही उपयोगी माध्यम होती है। आप भी, अपने
बड़े-बुजुर्गों से बातें करेंगे, तो, उनके समय की बातों को, उनके बचपन, उनके युवाकाल की बातों को और आसानी से
समझ पाएँगे। ये बेहतरीन मौका है
कि बुजुर्ग भी अपने बचपन के बारे में, उस दौर के बारे में, अपने घर के बच्चों को बताएँ।
साथियो, देश के एक बड़े हिस्से में, अब,
मानसून
पहुँच चुका है। इस बार बारिश को लेकर
मौसम विज्ञानी भी बहुत उत्साहित हैं, बहुत उम्मीद जता रहा है। बारिश अच्छी होगी तो हमारे किसानों की
फसलें अच्छी होंगी, वातावरण भी हरा-भरा
होगा। बारिश के मौसम में
प्रकृति भी जैसे खुद को rejuvenate कर लेती है। मानव, प्राकृतिक
संसाधनों का जितना दोहन करता है, प्रकृति एक तरह से, बारिश के समय, उनकी भरपाई करती है, refilling करती है। लेकिन, ये
refilling तभी हो सकती है जब हम
भी इसमें अपनी धरती-माँ का साथ दें, अपना दायित्व निभाएँ। हमारे द्वारा किया गया थोड़ा सा प्रयास, प्रकृति को, पर्यावरण को, बहुत मदद करता है। हमारे कई देशवासी तो इसमें बहुत बड़ा काम
कर रहे हैं।
कर्नाटक के मंडावली
में एक 80-85 साल के बुजुर्ग हैं, Kamegowda। कामेगौड़ा जी एक साधारण किसान हैं, लेकिन, उनका
व्यक्तित्व बहुत असाधारण है। उन्होंने, एक ऐसा काम किया है कि कोई भी आश्चर्य
में पड़ जायेगा। 80-85 साल के कामेगौड़ा जी, अपने जानवरों को चराते हैं, लेकिन, साथ-साथ
उन्होंने अपने क्षेत्र में नये तालाब बनाने का भी बीड़ा उठाया हुआ है। वे अपने इलाके में पानी की समस्या को
दूर करना चाहते हैं, इसलिए, जल-संरक्षण के काम में, छोटे-छोटे तालाब बनाने के काम में जुटे
हैं। आप हैरान होंगे कि 80-85 वर्ष के कामेगौड़ा जी, अब तक, 16 तालाब
खोद चुके हैं, अपनी मेहनत से, अपने परिश्रम से। हो सकता है कि ये जो तालाब उन्होंने बनाए, वो,
बहुत
बड़े-बड़े न हों, लेकिन, उनका ये प्रयास बहुत बड़ा है। आज,
पूरे
इलाके को, इन तालाबों से एक नया
जीवन मिला है।
साथियो, गुजरात के वडोदरा का भी एक उदहारण बहुत
प्रेरक है। यहाँ, जिला प्रशासन और स्थानीय लोगों ने मिलकर
एक दिलचस्प मुहिम चलाई। इस मुहिम की वजह से
आज वडोदरा में, एक हजार स्कूलों में rain water harvesting होने लगी है। एक अनुमान है, कि,
इस
वजह से, हर साल, औसतन करीब 10 करोड़ लीटर पानी, बेकार बह जाने से बचाया जा रहा है।
साथियो, इस बरसात में प्रकृति की रक्षा के लिए, पर्यावरण की रक्षा के लिए, हमें भी, कुछ
इसी तरह सोचने की, कुछ करने की पहल करनी
चाहिए। जैसे कई स्थानों पर, गणेश चतुर्थी को लेकर तैयारियाँ शुरू
होने जा रही होंगी। क्या इस बार, हम प्रयास कर सकते हैं कि eco-friendly गणेश जी की प्रतिमायें बनायेंगे, और,
उन्हीं
का पूजन करेंगे। क्या हम, ऐसी प्रतिमाओं के पूजन से बच सकते हैं, जो,
नदी-तालाबों
में विसर्जित किये जाने के बाद, जल के लिए, जल में रहने वाले जीव-जंतुओं के लिए
संकट बन जाती है। मुझे विश्वास है, आप,
ऐसा
जरुर करेंगे और इन सब बातों के बीच हमें ये भी ध्यान रखना है कि मानसून के season में कई बीमारियाँ भी आती हैं। कोरोना काल में हमें इनसे भी बचकर रहना
है। आर्युवेदिक औषधियाँ, काढ़ा, गर्म
पानी, इन सबका इस्तेमाल
करते रहिए, स्वस्थ रहिए।
मेरे प्यारे
देशवासियो, आज 28 जून को भारत अपने एक भूतपूर्व
प्रधानमंत्री को श्रृद्धांजलि दे रहा है, जिन्होंने एक नाजुक
दौर में देश का नेतृत्व किया। हमारे, ये,
पूर्व
प्रधानमंत्री श्री पी. वी नरसिम्हा राव जी की आज जन्म-शताब्दी वर्ष की शुरुआत का
दिन है। जब, हम,
पी.वी
नरसिम्हा राव जी के बारे में बात करते हैं,
तो, स्वाभाविक रूप से राजनेता के रूप में
उनकी छवि हमारे सामने उभरती है, लेकिन, यह भी सच्चाई है, कि,
वे, अनेक भाषाओँ को जानते थे। भारतीय एवं विदेशी भाषाएँ बोल लेते थे। वे,
एक
ओर भारतीय मूल्यों में रचे-बसे थे, तो दूसरी ओर, उन्हें पाश्चात्य साहित्य और विज्ञान का
भी ज्ञान था। वे, भारत के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक
थे। लेकिन, उनके जीवन का एक और पहलू भी है, और वो उल्लेखनीय है, हमें जानना भी चाहिए| साथियो, नरसिम्हा
राव जी अपनी किशोरावस्था में ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए थे। जब,
हैदराबाद
के निजाम ने वन्दे मातरम् गाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था, तब,
उनके
ख़िलाफ़ आंदोलन में उन्होंने भी सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था, उस समय, उनकी
उम्र सिर्फ 17 साल थी। छोटी उम्र से ही श्रीमान नरसिम्हा राव
अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज उठाने में आगे थे। अपनी
आवाज बुलंद करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ते थे। नरसिम्हा राव जी इतिहास को भी बहुत
अच्छी तरह समझते थे। बहुत ही साधारण
पृष्ठभूमि से उठकर उनका आगे बढ़ना, शिक्षा पर उनका जोर, सीखने की उनकी प्रवृत्ति, और,
इन
सबके साथ, उनकी, नेतृत्व क्षमता – सब कुछ स्मरणीय है। मेरा आग्रह है, कि,
नरसिम्हा
राव जी के जन्म-शताब्दी वर्ष में, आप सभी लोग, उनके जीवन और विचारों के बारे में, ज्यादा-से-ज्यादा जानने का प्रयास करें। मैं,
एक
बार फिर उन्हें अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियो, इस बार ‘मन की बात’ में कई विषयों पर बात हुई। अगली बार जब हम मिलेंगे, तो कुछ और नए विषयों पर बात होगी। आप, अपने संदेश, अपने innovative ideas मुझे जरूर भेजते रहिये। हम, सब-मिलकर आगे बढ़ेंगे, और आने वाले दिन और भी सकारात्मक होंगे, जैसा कि, मैंने, आज शुरू में कहा, हम, इसी साल यानि 2020 में ही बेहतर करेंगे, आगे बढ़ेंगे और देश भी नई उंचाईयों को छुएगा। मुझे भरोसा है कि 2020, भारत को इस दशक में एक नयी दिशा देने वाला वर्ष साबित होगा। इसी भरोसे को लेकर, आप भी आगे बढ़िये, स्वस्थ रहिए, सकारात्मक रहिए। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, आप सभी का बहुत–बहुत धन्यवाद।
नमस्कार।
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